मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार आज जिले के अग्रणी शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय दतिया में आत्म निर्भर मध्यप्रदेश अभियान के अन्तर्गत द्वि-दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की वंदना से किया गया।
कार्यक्रम में नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत नवीन शिक्षण पद्धतियों की उपादेयता शीर्षक के माध्यम से महाविद्यालय के शैक्षणिक स्टॉफ को नवीन शिक्षा पद्धति के प्रमुख प्रावधानों से अवगत कराने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ हुआ। संस्था के प्राचार्य डॉ. डी.आर. राहुल द्वारा प्रशिक्षण के मुख्य वक्ता डॉ. नीरज झा प्राध्यापक राजनीति विज्ञान, शासकीय एम.एल.बी. कॉलेज ग्वालियर, डॉ. किशोर अरोरा, प्राध्यापक रसायन विज्ञान, शासकीय पी.जी. कॉलेज दतिया एवं प्रषिक्षण में सम्मिलित महाविद्यालय के समस्त शिक्षकगण उपस्थित रहे। प्रोफेसर डॉ. रतन सूर्यवंशी द्वारा कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए नवीन शिक्षा नीति के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला गया।प्राचार्य ने अपने स्वागत उद्बोधन में नई शिक्षा नीति की उपादेयता, शिक्षकों की राष्ट्र निर्माण में भूमिका पर विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम की निरन्तरता में मुख्य वक्ता डॉ. नीरज झा ने बताया कि नवीन शिक्षा नीति वर्तमान समय की मांग है इसके समुचित क्रियान्वयन से ही भारतीय युवा पीढ़ी को समकालीन आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण, कौशल विकास प्रदान कर उन्हें रोजगार प्रदान कर राष्ट्र निर्माण में देश के युवाओं की सहभागिता सुनिश्चित की जा सकती है। नवीन शिक्षा पद्धति के माध्यम से हम एक ऐसे ज्ञान आधारित भारत का निर्माण कर सकते हैं जो कि आत्म निर्भर भारत के आदर्श को स्थापित करेगी।
कार्यक्रम में डॉ. किशोर अरोरा ने नवीन शिक्षा पद्धति के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि नवीन शिक्षा व्यापक विचार विमर्श और विषेशज्ञों के परामर्श से तैयार की गई है जिसमें डॉ. टी.एस. सुब्रमण्यिम और कृश्णस्वामी कस्तूरीरंजन की प्रमुख भूमिका रही। नवीन शिक्षा नीति में स्कूल, कॉलेज स्तर पर कई शैक्षणिक नवाचार किये गये हैं, जैसे भारत केन्द्रित शिक्षण पद्धति, उच्च गुणवत्ता हेतु शिक्षा प्रदान करना, व्यावसायिक एवं अनुसंधान संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देना तथा एन.एस.एस. एवं एन.सी.सी. की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाना है। नई शिक्षा में कक्षा पाँचवीं तक त्रिभाशा सूत्र का पालन एवं संस्कृत को वैकल्पिक भाषा के रूप में स्थान दिया गया है। प्रथम दिवस के सत्र के समापन पर प्रो. रतन सूर्यवंशी द्वारा समस्त वक्ताओं और शैक्षणिक स्टॉफ का आभार प्रकट किया गया।
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